बेरोजगारी दर
बेरोजगारी दर
बेरोजगारी दर एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो किसी देश या क्षेत्र में श्रम बाजार की स्थिति को दर्शाती है। यह अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण माप है, और नीति निर्माताओं, निवेशकों और आम जनता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। यह लेख बेरोजगारी दर की बुनियादी अवधारणाओं, इसकी गणना के तरीकों, इसके विभिन्न प्रकारों, इसे प्रभावित करने वाले कारकों और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की विस्तृत व्याख्या प्रदान करता है।
बेरोजगारी दर की परिभाषा
बेरोजगारी दर को उस श्रम शक्ति के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बेरोजगार है, लेकिन सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहा है। श्रम शक्ति में सभी कार्यरत और बेरोजगार व्यक्ति शामिल हैं जो नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इस परिभाषा में वे लोग शामिल नहीं हैं जो नौकरी की तलाश नहीं कर रहे हैं, जैसे कि छात्र, गृहिणियां, या सेवानिवृत्त लोग।
बेरोजगारी दर की गणना कैसे की जाती है
बेरोजगारी दर की गणना निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
बेरोजगारी दर = (बेरोजगारों की संख्या / श्रम शक्ति) * 100
- बेरोजगारों की संख्या: वे लोग जो वर्तमान में कार्यरत नहीं हैं, पिछले चार हफ्तों में सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश कर रहे हैं, और तुरंत काम शुरू करने के लिए उपलब्ध हैं।
- श्रम शक्ति: कार्यरत लोगों की संख्या और बेरोजगारों की संख्या का योग।
उदाहरण के लिए, यदि किसी देश में 50 लाख लोग कार्यरत हैं और 5 लाख लोग बेरोजगार हैं, तो श्रम शक्ति 55 लाख होगी। बेरोजगारी दर (5 लाख / 55 लाख) * 100 = 9.09% होगी।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय जैसे सरकारी संगठन नियमित रूप से श्रम बल सर्वेक्षण आयोजित करते हैं ताकि बेरोजगारी दर का आंकलन किया जा सके। ये सर्वेक्षण घरों के नमूने पर आधारित होते हैं और श्रम बाजार से संबंधित जानकारी एकत्र करते हैं।
बेरोजगारी के प्रकार
बेरोजगारी कई प्रकार की हो सकती है, जिनमें से प्रत्येक के अलग-अलग कारण और निहितार्थ होते हैं:
- चक्रीय बेरोजगारी: यह व्यवसाय चक्र में मंदी के दौरान होती है। जब अर्थव्यवस्था मंदी में होती है, तो मांग कम हो जाती है, और कंपनियां कर्मचारियों को निकालने के लिए मजबूर हो जाती हैं। आर्थिक मंदी के दौरान चक्रीय बेरोजगारी में वृद्धि होती है।
- संरचनात्मक बेरोजगारी: यह अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण होती है, जैसे कि तकनीकी प्रगति या उद्योगों का स्थानांतरण। जब श्रमिकों के कौशल नए उद्योगों या नौकरियों की आवश्यकताओं से मेल नहीं खाते हैं, तो संरचनात्मक बेरोजगारी हो सकती है। तकनीकी बेरोजगारी इसका एक उदाहरण है।
- घर्षणात्मक बेरोजगारी: यह तब होती है जब लोग नौकरी बदलते हैं या पहली बार श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं। नौकरी खोजने में लगने वाला समय घर्षणात्मक बेरोजगारी का कारण बनता है। यह बेरोजगारी का एक सामान्य और अपेक्षाकृत हानिरहित रूप है। नौकरी खोज में लगने वाला समय इसका मुख्य कारण है।
- मौसमी बेरोजगारी: यह मौसम के अनुसार बदलती हुई मांग के कारण होती है। उदाहरण के लिए, कृषि या पर्यटन जैसे उद्योग मौसमी बेरोजगारी से प्रभावित होते हैं। पर्यटन में गिरावट के कारण मौसमी बेरोजगारी बढ़ सकती है।
बेरोजगारी दर को प्रभावित करने वाले कारक
कई कारक बेरोजगारी दर को प्रभावित कर सकते हैं:
- आर्थिक विकास: मजबूत आर्थिक विकास आमतौर पर बेरोजगारी दर में कमी लाता है, क्योंकि कंपनियां अधिक श्रमिकों को नियुक्त करती हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
- सरकारी नीतियां: सरकारी नीतियां, जैसे कि राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति, बेरोजगारी दर को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, कर कटौती या सरकारी खर्च में वृद्धि आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित कर सकती है और रोजगार सृजन को बढ़ावा दे सकती है।
- वैश्वीकरण: वैश्वीकरण से रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं, लेकिन यह कुछ उद्योगों में नौकरियों के नुकसान का भी कारण बन सकता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रभाव जटिल होता है।
- तकनीकी परिवर्तन: तकनीकी परिवर्तन से कुछ नौकरियों का स्वचालन हो सकता है, जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है, लेकिन यह नए उद्योगों और नौकरियों के निर्माण का भी कारण बन सकता है। स्वचालन का प्रभाव महत्वपूर्ण है।
- शिक्षा और कौशल: श्रमिकों की शिक्षा और कौशल का स्तर बेरोजगारी दर को प्रभावित कर सकता है। उच्च स्तर की शिक्षा और कौशल वाले श्रमिकों के बेरोजगार होने की संभावना कम होती है। शिक्षा का महत्व निर्विवाद है।
- जनसंख्या वृद्धि: जनसंख्या वृद्धि श्रम आपूर्ति बढ़ा सकती है, जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है यदि पर्याप्त नए रोजगार सृजित नहीं होते हैं। जनसांख्यिकी का प्रभाव महत्वपूर्ण है।
अर्थव्यवस्था पर बेरोजगारी दर का प्रभाव
बेरोजगारी दर का अर्थव्यवस्था पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है:
- आर्थिक विकास: उच्च बेरोजगारी दर आर्थिक विकास को धीमा कर सकती है, क्योंकि कम लोग आय अर्जित करते हैं और खर्च करते हैं। उपभोक्ता व्यय में कमी का प्रभाव होता है।
- सामाजिक लागत: बेरोजगारी से गरीबी, अपराध और सामाजिक अशांति जैसी सामाजिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। सामाजिक सुरक्षा पर दबाव बढ़ता है।
- राजस्व: उच्च बेरोजगारी दर से सरकार के कर राजस्व में कमी आती है, क्योंकि कम लोग करों का भुगतान करते हैं। सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो सकती है।
- मुद्रास्फीति: बेरोजगारी दर और मुद्रास्फीति के बीच एक जटिल संबंध है। उच्च बेरोजगारी दर आमतौर पर मुद्रास्फीति को कम करती है, लेकिन यह मांग को भी कम कर सकती है। मूल्य स्थिरता एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
बेरोजगारी दर और वित्तीय बाजार
बेरोजगारी दर वित्तीय बाजारों को भी प्रभावित करती है:
- शेयर बाजार: उच्च बेरोजगारी दर शेयर बाजार के लिए नकारात्मक हो सकती है, क्योंकि यह कंपनियों के मुनाफे को कम करती है। स्टॉक ट्रेडिंग में गिरावट आ सकती है।
- बॉन्ड बाजार: उच्च बेरोजगारी दर बॉन्ड बाजार के लिए सकारात्मक हो सकती है, क्योंकि यह ब्याज दरों को कम करने के लिए केंद्रीय बैंकों पर दबाव डालती है।
- मुद्रा बाजार: बेरोजगारी दर मुद्रा बाजार को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि यह देश की आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित करती है। विदेशी मुद्रा व्यापार पर इसका प्रभाव होता है।
बेरोजगारी दर को कम करने के लिए नीतियां
सरकारें और केंद्रीय बैंक बेरोजगारी दर को कम करने के लिए कई नीतियों का उपयोग कर सकते हैं:
- राजकोषीय नीतियां: कर कटौती, सरकारी खर्च में वृद्धि, और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित कर सकते हैं और रोजगार सृजन को बढ़ावा दे सकते हैं। बुनियादी ढांचा विकास महत्वपूर्ण है।
- मौद्रिक नीतियां: ब्याज दरों को कम करना और मात्रात्मक सहजता जैसे उपाय उधार लेने को प्रोत्साहित कर सकते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- श्रम बाजार नीतियां: प्रशिक्षण कार्यक्रम, नौकरी खोज सहायता, और बेरोजगारी लाभ श्रमिकों को बेरोजगार होने पर मदद कर सकते हैं और उन्हें नौकरी खोजने में मदद कर सकते हैं। कौशल विकास महत्वपूर्ण है।
- शिक्षा नीतियां: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और श्रमिकों को तकनीकी कौशल प्रदान करना उन्हें श्रम बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकता है। शिक्षा प्रणाली में सुधार आवश्यक है।
बेरोजगारी दर के विभिन्न संकेतक
बेरोजगारी दर के अलावा, कई अन्य संकेतक भी श्रम बाजार की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं:
- श्रम बल भागीदारी दर: श्रम शक्ति में जनसंख्या का प्रतिशत।
- नौकरी सृजन: प्रति माह सृजित नौकरियों की संख्या।
- वेतन वृद्धि: मजदूरी में वृद्धि की दर।
- दावों की संख्या: बेरोजगारी लाभ के लिए नए दावों की संख्या। बेरोजगारी लाभ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा जाल है।
- श्रम उत्पादकता: प्रति श्रमिक उत्पादन की मात्रा।
निष्कर्ष
बेरोजगारी दर एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो किसी देश या क्षेत्र में श्रम बाजार की स्थिति को दर्शाता है। इसकी गणना, प्रकार, इसे प्रभावित करने वाले कारक और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों को समझना नीति निर्माताओं, निवेशकों और आम जनता के लिए आवश्यक है। प्रभावी नीतियों के माध्यम से बेरोजगारी दर को कम करना आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।
अतिरिक्त संसाधन
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
- विश्व बैंक
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
- भारतीय रिजर्व बैंक
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, भारत
संबंधित विषय
- सकल घरेलू उत्पाद
- मुद्रास्फीति
- आर्थिक विकास
- राजकोषीय नीति
- मौद्रिक नीति
- वैश्वीकरण
- तकनीकी परिवर्तन
- शिक्षा
- श्रम बाजार
- आर्थिक संकेतक
- आर्थिक मंदी
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
- स्वचालन
- उपभोक्ता व्यय
- सामाजिक सुरक्षा
- सार्वजनिक ऋण
- मूल्य स्थिरता
- ब्याज दरें
- विदेशी मुद्रा व्यापार
- कौशल विकास
- जनसांख्यिकी
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